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साँई लीला (भाग – 1)

स्पष्ट आत्मन
साँई लीला (भाग – 1)




यूं  तो जीवन के ह्रर मोड़ पर साँई बाबा के चमत्कारों के अनुभव और उन्के किसी किसी रूप में दर्शन हो ही जाते हैं उन्के भक्तों को पर आज मैं अपने जीवन के निजि अनुभवों को आपके सामने रख रही हूँ
मुझे आज भी याद नहीं की कब कैसे मुझे साँई ने अपनी शरण में ले लिया, साँई पर मेरी अटूट श्रधा और विश्वास है। अपने अनुभव आज मैं यहाँ शेयर कर रही हूँ  उम्मीद है आप सभी साँई भक्तों को साँई लीला की एक और अनुभूती होगी।
बात आठ से नौ साल पेहले की है, कौलेज से पास होने के बाद काफ़ी इन्टर्व्यू दिये पर कहीं नौकरी की बात बनती नज़र नहीं रही थी। पैसों के नाम पर मेरे पर्स में उस दिन सिर्फ़ 11रु थे जो मैनें मेट्रो से घर जानें के लिये रखे थे। घर से बाबा को प्राथ्ना कर के निकली की सफ़्ल्ता देना मन में इस भावना के साथ की यदी नौकरी लग गयी तो पेहली तन्ख्वा से सामर्थ्य अनूसार ध्न्य्वाद करूंगी।
मेट्रो के कोच से सफ़र कर इन्द्र्प्र्स्थ मेट्रो स्टेशन पे उतरी, अभी थोड़ी ही आगे बडी थी की ना जानें सामनें से एक बड़ी उम्र के अन्कल जिन्के चेह्ररे पे असीम तेज था मेरे सामने आकर बोले बेटा अगर तुम बुरा ना मानों तो एक अनुरोध करूं मैं थोड़ी तकलीफ़ में हूं , पेहले तो मैं थोड़ा झिझकी क्युंकि मैं अन्जान लोगों से इस तरह ज़्यादा बात नहीं करती, फ़िर सोचा की बड़े हैं एक बार सुन लेना चाहिये की क्या बात है।
वो बोले बेटा मुझे गलत मत समझना मेरी पत्नी की तबियत बहुत खराब है , उसकी दवाई लेने के लिये मेरे पास पैसे नहीं हो पा रहे, 500रु की मदद कर सकती हो बेटा उसकी दवाई ले पाऊँगा
मन ही मन मैं बहुत मज्बूर और शर्मिंदा मेह्सूस कर रही थी की क्या बोलूँ  पर्स में 11रु मुश्किल से हैं और इन्टर्व्यू पे पहुंचना भी है। फ़िर मैंने उनसे माफ़ी मांगते हुए कहा की अन्कल मेरे पास सच में सिर्फ़ 11रु हैं जो मैं अपनी मम्मी से घर वापस जानें के लिये लेके आई हूं, मैं खुद परेशान हूँ अगर होते तो आपकी मदद ज़रूर करती। वैसे ये बातचीत मुश्किल से मात्र दो मिनट की रही होगी।

उन्होनें मुस्कुरा कर कहा कोइ बात नहीं बेटा तूने इतना कह दिया यही बहुत है, मेरे सर पर हाथ रख के बोले तुझे आज नौकरी ज़रूर मिल जाएगी और उल्टी तर्फ़ आगे बड़ गये।
एक दो सेक्न्ड का फ़र्क रहा होगा और जैसे ही मैंने उन्हें दोबारा देखने के लिये पल्टी, वो वहाँ नहीं थे। अभी इतना भी समय नही हुआ था की वो जाते हुए नज़र ना पाते। मैं तो ये सोचकर पल्टी थी की उनसे उनका नम्बर लेके कुछ दिन बाद पैसों का इन्तेज़ाम कर के उनकी मदद कर दूंगी, पर दूर दूर तक वो नज़र नहीं आए। तभी मैंने गौर किया की बाहर जाने का सिर्फ़ वही रस्ता था और मेट्रो में वो चढ़े नहीं तो गये कहां? ऊपर से उन्हें कैसे मालूम हुआ की मैं नौकरी की तलाश में निकली थी?

उस दिन इन्टर्व्यू में ना सिर्फ़ मुझे सफ़ल्ता मिली बल्कि उसी दिन अपोंइट्मेंट लेटेर भी मिल गया। मैं आज तक नहीं समझ पायी की कैसे सब अपने आप हुआ क्युंकि जो भी उस समय के हालात थे वो नौकरी मेरे लिये बाबा का चमत्कार ही थी, मानों सिर्फ़ मेरा मन टटोलने और आशीर्वाद देने आये थे साँई बाबा।


Love, Light, Peace, Gratitude and Lots of Divine and Angel Blessings to you all….


If you have any sai experience you would like to share pls share in the comment box below.

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