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Showing posts from 2016

गुरु की मेहत्ता

गुरु की महत्ता, क्यूँ ज़रुरी है जीवन में एक सद्गुरु मानव जीवन में चिरकाल से ही गुरु का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ह्मारे देश की संस्क्रिति सदा ही सम्पन्न व धनी रही है अगर बात करें शिष्टाचार, संस्कारों, शिक्षा व सभ्यता की। हमारे भारत वर्ष में कितने ही युगों से बाल्य अवस्था से ही ह्में गुरु की मह्त्ता व महान्ता से अविभूत कराया जाता रहा है खासकर जब हमारा देश गुरुकुलों से भरपूर हुआ करता था। “गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु: गुरुर्महेश्वर: । गुरु: साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: ॥“ अथार्त – गुरु ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के समान है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है, ईश्वर है। ह्मारे पुराणों, शास्त्रों व ग्रन्थों में सदा ही गुरु को सर्वोत्तम स्थान दिया गया है। गुरु का स्थान माता पिता व ईश्वर से भी सर्वोपरी है। परंतु आज के इस आधुनिक युग में गुरु, ज्ञान, व गुरुकुलों का महत्व व अस्तित्व खोता ही नज़र आता है। शिक्षा ज़्यादातर विद्यालयों में बस व्यापारिक ढंग से चलाया जाता है। ज्ञान बस नम्बरों का खेल बनकर रह गया है। आज की पीढ़ी सही गुरु व मार्गदर्शन से विमुख होती जा रही

Misconceptions About Reiki

First Reiki Master Dr. Mikao Usui This article is for all those who have misconceptions and misunderstandings about Reiki, a healing technique and divine power. Ever since we people have news channels, magazines, and other mediums of information, we have been hearing a term used by news reporters,  रेकी (RECCE), to report most criminal activities,  which include terrorist activities too. Today, I want to clear up all doubts and misunderstandings people might have about this word called  रेकी (RECCE) . After the sad incident of  Pathankot,  our media again reported the term  रेकी,  used by the terrorists. It is an issue that has been raising this question several times, and that is, do all these terrorists and criminals also use  Reiki ? Whenever any such incident or activity happens, we notice that TV reporters and news leaders flash all over that the criminals here did रेकी  (RECCE)  before committing the crime. Let me clarify this. It is a misconception and a confusing term with the

साँई लीला (भाग – 2)

स्पष्ट आत्मन साँई लीला (भाग – 2) हमारे पिछ्ले सम्वाद में मैनें साँई बाबा के साथ अपना एक अनुभव शेयर किया था। आज एक और अनुभव मैं आपके साथ शेयर करना चाहती हूँ जो मेरी ही करीबी रिश्ते में अनुभव किया गया। बात नये साल जनवरी 2016 की ही है जब नये साल के दर्शन के लिये मैं अपनी मम्मी के साथ शिर्डी गयी थी।   जाना तो मेरी मासी जी ने भी था पर किसी कारण वश वो ना जा सकीं और उन्होनें मम्मी से उनकी तरफ़ से वहाँ दान पेटी में पैसे पहुँचाने को कह दिया। हम जब दर्शन करने के लिये पहुँचे तो उनका फोन आया की उनकी तरफ़ से 1100 रु भेंट करने हैं व उनकी परेशानी दूर करने के लिये बाबा से प्रार्थ्ना करने को कहा पर तब तक हम अंदर पहुँच चुके थे और हमारे व एक दो और पड़ोसियों व दोस्तों के पैसे मिलाकर पैसे पूरे नहीं हो रहे थे तो हमने उनसे पूछ कर सिर्फ़ 500 रु ही दानपात्र में पहुँचा दिये। उधर मासी ने दिल्ली में जो अनुभव किया उसका कोइ तर्क नहीं किया जा सकता। उनके घर के नीचे से अचानक बाबा की पाल्की गुज़री और ठीक उनके घर के नीचे

साँई लीला (भाग – 1)

स्पष्ट आत्मन साँई लीला (भाग – 1) यूं   तो जीवन के ह्रर मोड़ पर साँई बाबा के चमत्कारों के अनुभव और उन्के किसी न किसी रूप में दर्शन हो ही जाते हैं उन्के भक्तों को पर आज मैं अपने जीवन के निजि अनुभवों को आपके सामने रख रही हूँ । मुझे आज भी याद नहीं की कब कैसे मुझे साँई ने अपनी शरण में ले लिया , साँई पर मेरी अटूट श्रधा और विश्वास है। अपने अनुभव आज मैं यहाँ शेयर कर रही हूँ   उम्मीद है आप सभी साँई भक्तों को साँई लीला की एक और अनुभूती होगी। बात आठ से नौ साल पेहले की है , कौलेज से पास होने के बाद काफ़ी इन्टर्व्यू दिये पर कहीं नौकरी की बात बनती नज़र नहीं आ रही थी। पैसों के नाम पर मेरे पर्स में उस दिन सिर्फ़ 11 रु थे जो मैनें मेट्रो से घर जानें के लिये रखे थे। घर से बाबा को प्राथ्ना कर के निकली की सफ़्ल्ता देना मन में इस भावना के साथ की यदी नौकरी लग गयी तो पेहली तन्ख्वा से सामर्थ्य अनूसार ध्न्य्वाद करूंगी। मेट्रो के