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Showing posts from April, 2016

साँई लीला (भाग – 2)

स्पष्ट आत्मन साँई लीला (भाग – 2) हमारे पिछ्ले सम्वाद में मैनें साँई बाबा के साथ अपना एक अनुभव शेयर किया था। आज एक और अनुभव मैं आपके साथ शेयर करना चाहती हूँ जो मेरी ही करीबी रिश्ते में अनुभव किया गया। बात नये साल जनवरी 2016 की ही है जब नये साल के दर्शन के लिये मैं अपनी मम्मी के साथ शिर्डी गयी थी।   जाना तो मेरी मासी जी ने भी था पर किसी कारण वश वो ना जा सकीं और उन्होनें मम्मी से उनकी तरफ़ से वहाँ दान पेटी में पैसे पहुँचाने को कह दिया। हम जब दर्शन करने के लिये पहुँचे तो उनका फोन आया की उनकी तरफ़ से 1100 रु भेंट करने हैं व उनकी परेशानी दूर करने के लिये बाबा से प्रार्थ्ना करने को कहा पर तब तक हम अंदर पहुँच चुके थे और हमारे व एक दो और पड़ोसियों व दोस्तों के पैसे मिलाकर पैसे पूरे नहीं हो रहे थे तो हमने उनसे पूछ कर सिर्फ़ 500 रु ही दानपात्र में पहुँचा दिये। उधर मासी ने दिल्ली में जो अनुभव किया उसका कोइ तर्क नहीं किया जा सकता। उनके घर के नीचे से अचानक बाबा की पाल्की गुज़री और ठीक उनके घर के नीचे

साँई लीला (भाग – 1)

स्पष्ट आत्मन साँई लीला (भाग – 1) यूं   तो जीवन के ह्रर मोड़ पर साँई बाबा के चमत्कारों के अनुभव और उन्के किसी न किसी रूप में दर्शन हो ही जाते हैं उन्के भक्तों को पर आज मैं अपने जीवन के निजि अनुभवों को आपके सामने रख रही हूँ । मुझे आज भी याद नहीं की कब कैसे मुझे साँई ने अपनी शरण में ले लिया , साँई पर मेरी अटूट श्रधा और विश्वास है। अपने अनुभव आज मैं यहाँ शेयर कर रही हूँ   उम्मीद है आप सभी साँई भक्तों को साँई लीला की एक और अनुभूती होगी। बात आठ से नौ साल पेहले की है , कौलेज से पास होने के बाद काफ़ी इन्टर्व्यू दिये पर कहीं नौकरी की बात बनती नज़र नहीं आ रही थी। पैसों के नाम पर मेरे पर्स में उस दिन सिर्फ़ 11 रु थे जो मैनें मेट्रो से घर जानें के लिये रखे थे। घर से बाबा को प्राथ्ना कर के निकली की सफ़्ल्ता देना मन में इस भावना के साथ की यदी नौकरी लग गयी तो पेहली तन्ख्वा से सामर्थ्य अनूसार ध्न्य्वाद करूंगी। मेट्रो के